EN اردو
अक्स क्या दीदा-ए-तर में देखा | शाही शायरी
aks kya dida-e-tar mein dekha

ग़ज़ल

अक्स क्या दीदा-ए-तर में देखा

हमदम कशमीरी

;

अक्स क्या दीदा-ए-तर में देखा
हम ने दरिया को भँवर में देखा

सर-ए-मंज़िल कोई मंज़िल न मिली
इक सफ़र और सफ़र में देखा

नज़र आया कभी बाज़ार में घर
कभी रस्ता कोई घर में देखा

सुरख़-रू जंग से लौट आया था
ख़ूँ में लत-पत जिसे घर में देखा

जाने कब आ के यहाँ बैठे थे
अपना साया भी शजर में देखा

अब भी चिपका है मिरी आँखों में
जो धुआँ शम्अ' सहर में देखा

आग किस देस लगी है अब के
फिर धुआँ अपने नगर में देखा

एक ही जस्त में हम ने 'हमदम'
फ़ासला दश्त से दर में देखा