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अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है | शाही शायरी
aks ko phul banane mein guzar jati hai

ग़ज़ल

अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है

अशफ़ाक़ नासिर

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अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है
ज़िंदगी आइना-ख़ाने में गुज़र जाती है

शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
और शब उस को मनाने में गुज़र जाती है

हर मोहब्बत के लिए दिल में अलग ख़ाना है
हर मोहब्बत उसी ख़ाने में गुज़र जाती है

ज़िंदगी बोझ बताता था बताने वाला
ये तो बस एक बहाने में गुज़र जाती है

तू बता आँख नया ख़्वाब कहाँ से देखे
रोज़ शब तुझ को भुलाने में गुज़र जाती है

वो चला जाता है और साअत-ए-रुख़्सत 'अश्फ़ाक़'
जिस्म का बोझ उठाने में गुज़र जाती है