अक्स की कहानी का इक़्तिबास हम ही थे
आईने के बाहर भी आस-पास हम ही थे
जब शुऊर-ए-इंसानी राब्ते का प्यासा था
हर्फ़-ओ-सौत इल्म-ओ-फ़न की असास हम ही थे
फ़ासलों ने लम्हों को मुंतशिर किया तो फिर
ए'तिबार-ए-हस्ती की एक आस हम ही थे
मुक़्तदिर मोहब्बत की शिकवा-संज महफ़िल में
ख़ामुशी को अपनाए पुर-सिपास हम ही थे
ख़्वाब को हक़ीक़त का रूप कोई क्या देता
मुनअकिस तसव्वुर का इनइकास हम ही थे

ग़ज़ल
अक्स की कहानी का इक़्तिबास हम ही थे
ग़ालिब इरफ़ान