अकेले अकेले ही पा ली रिहाई
मुझे मारे जाती है तेरी जुदाई
ये आहंग-ए-नग़्मा ये रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल
हर इक चीज़ तेरी ही ख़ातिर रचाई
मरी जाँ ये कैसा सितम वक़्त का है
है मेरी ही क़िस्मत में नौहा-सराई
सितारों की गर्दिश दिलों का बिछड़ना
ये कैसे ख़ुदा की है कैसी ख़ुदाई
न पूछो अभी हाल 'आहन' का यारो
कभी जाँ-ब-लब है कभी जाँ-फ़िदाई
ग़ज़ल
अकेले अकेले ही पा ली रिहाई
अख़लाक़ अहमद आहन