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अकेले अकेले ही पा ली रिहाई | शाही शायरी
akele akele hi pa li rihai

ग़ज़ल

अकेले अकेले ही पा ली रिहाई

अख़लाक़ अहमद आहन

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अकेले अकेले ही पा ली रिहाई
मुझे मारे जाती है तेरी जुदाई

ये आहंग-ए-नग़्मा ये रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल
हर इक चीज़ तेरी ही ख़ातिर रचाई

मरी जाँ ये कैसा सितम वक़्त का है
है मेरी ही क़िस्मत में नौहा-सराई

सितारों की गर्दिश दिलों का बिछड़ना
ये कैसे ख़ुदा की है कैसी ख़ुदाई

न पूछो अभी हाल 'आहन' का यारो
कभी जाँ-ब-लब है कभी जाँ-फ़िदाई