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अक्सर रात गए तक मैं चौखट पर बैठा रहता हूँ | शाही शायरी
akasr raat gae tak main chaukhaT par baiTha rahta hun

ग़ज़ल

अक्सर रात गए तक मैं चौखट पर बैठा रहता हूँ

अमीक़ हनफ़ी

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अक्सर रात गए तक मैं चौखट पर बैठा रहता हूँ
सिगरेट पीता चाँद को तकता मन में बिकता रहता हूँ

रैक पे रख कर भूल गया था उस के चेहरे ऐसी किताब
हाथ में जब आ जाती है तो पहरों पढ़ता रहता हूँ

मरमर का पत्थर बन जाती है जब पूरे चाँद की रात
अपनी नज़रों की छीनी से मूरतें घड़ता रहता हूँ

आख़िरी शो से लौटने वाले भी ग़ाएब हो जाते हैं
मैं जाने किन तस्वीरों में कब तक खोया रहता हूँ