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अजनबी बन के तो गुज़रा मत कर | शाही शायरी
ajnabi ban ke to guzra mat kar

ग़ज़ल

अजनबी बन के तो गुज़रा मत कर

शम्स तबरेज़ी

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अजनबी बन के तो गुज़रा मत कर
दोस्ती का यूँ तमाशा मत कर

तेरी आँखें नहीं दो जुगनू हैं
बे-सबब उन को भिगोया मत कर

उस के आने का गुमाँ होता है
ऐ हवा पर्दा हिलाया मत कर

मैं मुसाफ़िर हूँ सफ़र क़िस्मत है
मेरे बारे में तू सोचा मत कर

ज़िंदगी हो कि मोहब्बत हो 'शम्स'
ऐसी चीज़ों पे भरोसा मत कर