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अजीब वाक़िआ' था उस को अपने घर लाना | शाही शायरी
ajib waqia tha usko apne ghar lana

ग़ज़ल

अजीब वाक़िआ' था उस को अपने घर लाना

मज़हर इमाम

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अजीब वाक़िआ' था उस को अपने घर लाना
कभी चराग़ उठाना कभी क़मर लाना

बयान-ए-इज्ज़ में अल्फ़ाज़-ए-मो'तबर लाना
बड़ा कमाल दुआओं में है असर लाना

बहुत है आज तमन्ना उड़ान भरने की
क़फ़स से जा के हमारे शिकस्ता पर लाना

थके हुए हैं सभी पाएमाल राहों पर
कहीं से ढूँड के फिर ताज़ा रह-गुज़र लाना

वो शोख़ रंग का शैदा है ये ख़याल रहे
क़रीब आना तो ख़ुद को लहू में तर लाना

बस एक काम हुआ हम से ज़िंदगी में 'इमाम'
अयाग़-ए-उम्र शराब-ए-ज़ियाँ से भर लाना