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अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी | शाही शायरी
ajib shai hai tarah-dar bhi tamanna bhi

ग़ज़ल

अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी

सय्यद अमीन अशरफ़

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अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी
रक़ीब-ए-जाँ भी है क़ातिल भी है मसीहा भी

उदास उदास हरीम-ए-निगाह बे-मंज़र
धुआँ धुआँ ख़लिश-ए-राएगाँ से दुनिया भी

दिल-ओ-दिमाग़-ओ-नफ़स तिश्नगी से हैं रौशन
इसी की आग में जलते हैं शहर-ओ-सहरा भी

वही हवा-ए-जहाँ-ताब मो'तबर है कि जो
जिला के छोड़ गई है चराग़-ए-फ़र्दा भी

तलब में मुझ से तो लम्हा भी इक नहीं कटता
इसी ख़ुमार ने काटे हैं कोह-ओ-दरिया भी

तिरे ख़याल से ख़ल्वत भी अंजुमन है मुझे
तिरे ख़याल से हों अंजुमन में तन्हा भी

फ़ज़ा-ए-ख़्वाब-ए-तरब ने जगा दिया मुझ को
लगी जो आँख तो होने लगा सवेरा भी