अजीब शहर का नक़्शा दिखाई देता है
जिधर भी देखो अँधेरा दिखाई देता है
नज़र नज़र की है और अपने अपने ज़र्फ़ की बात
मुझे तो क़तरे में दरिया दिखाई देता है
बुरा कहे जिसे दुनिया बुरा नहीं होता
मिरी नज़र में वो अच्छा दिखाई देता है
नहीं फ़रेब-ए-नज़र ये यही हक़ीक़त है
मुझे तो शहर भी सहरा दिखाई देता है
हैं सिर्फ़ कहने को बिजली के क़ुमक़ुमे रौशन
हर एक सम्त अँधेरा दिखाई देता है
अजीब हाल है सैलाब बन गए सहरा
जिसे भी देखिए प्यासा दिखाई देता है

ग़ज़ल
अजीब शहर का नक़्शा दिखाई देता है
आसी रामनगरी