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अजीब शाम थी जब लौट कर मैं घर आया | शाही शायरी
ajib sham thi jab lauT kar main ghar aaya

ग़ज़ल

अजीब शाम थी जब लौट कर मैं घर आया

सीमान नवेद

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अजीब शाम थी जब लौट कर मैं घर आया
कोई चराग़ लिए मुंतज़िर नज़र आया

दुआ को हाथ उठाए ही थे ब-वक़्त-ए-सहर
कि इक सितारा मिरे हाथ पर उतर आया

तमाम उम्र तिरे ग़म की आबयारी की
तो शाख़-ए-जाँ में गुल-ए-ताज़ा का समर आया

फिर एक शाम दर-ए-दिल पे दस्तकें जागीं
और एक ख़्वाब के हमराह नामा-बर आया

गले से लग के मिरे पूछने लगा दरिया
क्यूँ अपनी प्यास को सहरा में छोड़ कर आया

ये किस दयार के क़िस्से सुना रहे हो 'नवेद'
ये किस हसीन का आँखों में ख़्वाब दर आया