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अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है | शाही शायरी
ajib rang sa chehron pe be-kasi ka hai

ग़ज़ल

अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है

फ़ारूक़ नाज़की

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अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है
चलो सँभल के ये आलम रवा-रवी का है

कभी न बात ज़माने ने दिल लगा के सुनी
यही तो ख़ास सबब मेरी बे-दिली का है

सुना है लोग वहाँ मुझ से ख़ार खाते हैं
फ़साना आम जहाँ मेरी बेबसी का है