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अजीब लगता है यूँही बिछा हुआ बिस्तर | शाही शायरी
ajib lagta hai yunhi bichha hua bistar

ग़ज़ल

अजीब लगता है यूँही बिछा हुआ बिस्तर

अज़हर अब्बास

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अजीब लगता है यूँही बिछा हुआ बिस्तर
ये एक उम्र से ख़ाली पड़ा हुआ बिस्तर

सुना रहा है कहानी हमें मकीनों की
मकाँ के साथ ये आधा जला हुआ बिस्तर

न-जाने कौन सा लम्हा बिना-ए-हिजरत हो
मैं खोलता ही नहीं हूँ बँधा हुआ बिस्तर

उदासियाँ न शिकन-दर-शिकन नज़र आतीं
तिरे वजूद से होता भरा हुआ बिस्तर

उड़ा रहा है हमारी मोहब्बतों का मज़ाक़
ये एक-दूजे से हट कर किया हुआ बिस्तर