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अजीब कर्ब सा है ज़िंदगी के चेहरे पर | शाही शायरी
ajib karb sa hai zindagi ke chehre par

ग़ज़ल

अजीब कर्ब सा है ज़िंदगी के चेहरे पर

अहसन इमाम अहसन

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अजीब कर्ब सा है ज़िंदगी के चेहरे पर
अंधेरा जैसे किसी रौशनी के चेहरे पर

यक़ीन कैसे करूँ मैं तुम्हारी बातों का
कि क़तरे अश्क के हैं शो'लगी के चेहरे पर

छुपा मिला मुझे ग़म की सियाह रातों में
जिसे मैं ढूँड रहा हूँ ख़ुशी के चेहरे पर

ज़माने-भर में हुए जो भी हादसे शब-ओ-रोज़
नुमायाँ हैं वो मिरी शाइ'री के चेहरे पर

जो इक ख़ुलूस था नापैद हो गया 'अहसन'
ग़ुबार-ए-बुग़्ज़ है अब दोस्ती के चेहरे पर