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अजीब ढंग से मैं ने यहाँ गुज़ारा किया | शाही शायरी
ajib Dhang se maine yahan guzara kiya

ग़ज़ल

अजीब ढंग से मैं ने यहाँ गुज़ारा किया

सऊद उस्मानी

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अजीब ढंग से मैं ने यहाँ गुज़ारा किया
कि दिल को बर्फ़ किया ज़ेहन को शरारा किया

मिज़ाज-ए-दर्द को सब लफ़्ज़ भी क़ुबूल न थे
किसी किसी को तिरे ग़म का इस्तिआरा किया

फिर उस के अश्क भी उस को अदा न कर पाए
वो दुख जो उस के तबस्सुम ने आश्कारा किया

कि जैसे आँख के लगते ही खुल गईं आँखें
निगाह-ए-जाँ ने बहुत दूर तक नज़ारा किया

हमें भी देख कि तज्सीम-ए-नौ से गुज़रे हैं
बदन को शीशा किया दिल को संग-पारा किया

अजब मिज़ाज था तन्हाई-आश्ना कि 'सऊद'
ख़ुद अपना साथ भी मुश्किल से ही गवारा किया