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अजीब आदत है बे-सबब इंतिज़ार करना | शाही शायरी
ajib aadat hai be-sabab intizar karna

ग़ज़ल

अजीब आदत है बे-सबब इंतिज़ार करना

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

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अजीब आदत है बे-सबब इंतिज़ार करना
शब-ए-अलम में विसाल के दिन शुमार करना

नहीं है आसाँ अदावतों में असीर रहना
रविश ज़माने से मुख़्तलिफ़ इख़्तियार करना

न बे-नियाज़-ए-क़ुयूद-ए-आदाब-ए-इश्क़ रहना
न अपने अतराफ़ मस्लहत का हिसार करना

न अहल-ए-दानिश के दाम-ओ-दाना का सैद होना
न शहर वालों के लुत्फ़ का ए'तिबार करना

जो महफ़िलों में शहीद-ए-पिंदार-ए-हुस्न होना
तो ख़ल्वतों में ग़ज़ाल मअनी शिकार करना

बुझे चराग़ों को ज़ेब-ए-दामान-ओ-जेब रखना
पिघलती शमएँ क़तार-अंदर-क़तार करना