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अजब तरह के कमाल करने भी आ गए हैं | शाही शायरी
ajab tarah ke kamal karne bhi aa gae hain

ग़ज़ल

अजब तरह के कमाल करने भी आ गए हैं

अशफ़ाक़ नासिर

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अजब तरह के कमाल करने भी आ गए हैं
बिछड़ के अब माह ओ साल करने भी आ गए हैं

जो मेरी बातों को मानता था बिला-तआमुल
सुनो उसे अब सवाल करने भी आ गए हैं

सुना है लोगों से अब वो मिलता है मुस्कुरा कर
उसे तअल्लुक़ बहाल करने भी आ गए हैं

वो शख़्स जिस की ख़ुशी का बाइस थीं मेरी बातें
उसे अब उन पर मलाल करने भी आ गए हैं

सुना है अब रास्ता बदलता है वो अचानक
उसे तो राही निढाल करने भी आ गए हैं