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अजब सी बे-कली से चूर कोई | शाही शायरी
ajab si be-kali se chur koi

ग़ज़ल

अजब सी बे-कली से चूर कोई

सबीहा सबा

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अजब सी बे-कली से चूर कोई
कुछ अपने दिल से है मजबूर कोई

कभी ऐसी अनोखी सोच उभरे
कि जैसे सोच पर मा'मूर कोई

वो जिन के दम से रौशन ज़िंदगी है
दिलों में उन के होगा नूर कोई

तुम्हें कैसे भुलाया जा सकेगा
यहाँ ऐसा नहीं दस्तूर कोई