EN اردو
अजब सी आज-कल मैं इक परेशानी में हूँ यारो | शाही शायरी
ajab si aaj-kal main ek pareshani mein hun yaro

ग़ज़ल

अजब सी आज-कल मैं इक परेशानी में हूँ यारो

विनीत आश्ना

;

अजब सी आज-कल मैं इक परेशानी में हूँ यारो
यही मुश्किल मेरी है बस मैं आसानी में हूँ यारो

मुझे उन झील सी आँखों में यूँ भी डूबना ही है
न पूछो बारहा कितने में अब पानी में हूँ यारो

न सूरत वस्ल की कोई न कोई हिज्र का ग़म है
मैं अब के बार कुछ ऐसी ही वीरानी में हूँ यारो

मुझे लगता था मुमकिन ही नहीं है उस के बिन जीना
मैं ज़िंदा हूँ मगर मुद्दत से हैरानी में हूँ यारो

बदन का पैरहन छोटा मुझे पड़ने लगा इतना
मैं खुल कर साँस लेने को भी उर्यानी में हूँ यारो

ख़ुदा ने रख दिया मुझ को उसी के दिल में जाने क्यूँ
न बाहोँ में हूँ मैं जिस की न पेशानी में हूँ यारो

उसी इक 'आशना' को ढूँढती हर पल मिरी आँखें
मैं रहता रात-दिन जिस की निगहबानी में हूँ यारो