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अजब शिकस्त का एहसास दिल पे छाया था | शाही शायरी
ajab shikast ka ehsas dil pe chhaya tha

ग़ज़ल

अजब शिकस्त का एहसास दिल पे छाया था

शारिक़ कैफ़ी

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अजब शिकस्त का एहसास दिल पे छाया था
किसी ने मुझ को निशाना नहीं बनाया था

उसी निगाह ने आँखों को कर दिया पत्थर
उसी निगाह में सब कुछ नज़र भी आया था

यहाँ तो रेत है पत्थर हैं और कुछ भी नहीं
वो क्या दिखाने मुझे इतनी दूर लाया था

उलझ गया हूँ कुछ ऐसा कि याद भी तो नहीं
ये वहम पहले-पहल कैसे दिल में आया था

वो मैं नहीं था तुम्हारी तरफ़ सरकता हुआ
हवस ने तीरगी का फ़ाएदा उठाया था

बिछड़ना इतना ही आसान था अगर उस से
तो ख़ुद-कुशी का ये सामान क्यूँ जुटाया था

गिला तो आज भी सच्चाई है मगर 'शारिक़'
ये झूट उस से में पहले ही बोल आया था