ऐसी नई कुछ बात न होगी
ख़त्म-ए-सहर तक रात न होगी
मेरी जहाँ पर बात न होगी
तेरी भी औक़ात न होगी
कैसे बुझेंगे जलते मसाइल
खुल कर जब तक बात न होगी
अहल-ए-सहर इस दर्जा मगन हैं
जैसे कभी अब रात न होगी
मेरे नहीं तो ग़ैर के हो लो
तन्हा बसर औक़ात न होगी
सूरज का जलना बुझना क्या
ख़त्म ये काली रात न होगी
दिल का सफ़र शो'लों का सफ़र है
शबनम की बरसात न होगी
बाज़ी-ए-दिल 'असरार' अगर है
मात भी तेरी मात न होगी
ग़ज़ल
ऐसी नई कुछ बात न होगी
असरारुल हक़ असरार