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ऐसी मुश्किल में न जाँ थी पहले | शाही शायरी
aisi mushkil mein na jaan thi pahle

ग़ज़ल

ऐसी मुश्किल में न जाँ थी पहले

मुनीर सैफ़ी

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ऐसी मुश्किल में न जाँ थी पहले
ज़ीस्त कब इतनी गराँ थी पहले

आसमाँ था न ज़मीं थी कोई
काएनात एक धुआँ थी पहले

धूप बहरूप पिघलता सोना
चाँदनी आब-ए-रवाँ थी पहले

एक मख़्सूस समाअ'त सब की
एक मानूस ज़बाँ थी पहले

क़त्ल के कब थे ये सारे सामाँ
एक तीर एक कमाँ थी पहले

ये जो बिजली सी चमक जाती है
सात पर्दों में निहाँ थी पहले

इस जगह बंक नहीं होता था
इक किताबों की दुकाँ थी पहले

कुछ तो रस्ते थे सितारों ऐसे
कुछ तबीअत भी रवाँ थी पहले

फूल ही फूल खिला करते थे
मुझ में ये आग कहाँ थी पहले

ज़ख़्म दीवार बताता है 'मुनीर'
एक तस्वीर यहाँ थी पहले