ऐसी अच्छी सूरत निकली पानी की
आँखें पीछे छूट गईं सैलानी की
कैरम हो शतरंज हो या फिर इश्क़ ही हो
खेल कोई हो हम ने बे-ईमानी की
क़ैद हुई हैं आँखें ख़्वाब जज़ीरे पर
पा कर एक सज़ा सी काले पानी की
दीवारों पर चाँद सितारे रौशन हैं
बच्चों ने देखो तो क्या शैतानी की
चाँद की गोली रात ने खा ही ली आख़िर
पहले तो शैतान ने आना-कानी की
जलते दिए सा इक बोसा रख कर उस ने
चमक बढ़ा दी है मेरी पेशानी की
मैं उस की आँखों के पीछे भागा था
जब अफ़्वाह उड़ी थी उन में पानी की
ग़ज़ल
ऐसी अच्छी सूरत निकली पानी की
स्वप्निल तिवारी