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ऐश-ओ-इशरत ही में कुछ है ज़िंदगी | शाही शायरी
aish-o-ishrat hi mein kuchh hai zindagi

ग़ज़ल

ऐश-ओ-इशरत ही में कुछ है ज़िंदगी

जोशिश अज़ीमाबादी

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ऐश-ओ-इशरत ही में कुछ है ज़िंदगी
मर्ग है बे-यार ओ बे-मय ज़िंदगी

जो तिरे कुश्ते हैं ऐ मुतरिब पिसर
है उन्हों की नाला-ए-नय ज़िंदगी

ने हवा ने अब्र ने साक़ी ने मय
कीजिए इस तरह ता-कै ज़िंदगी

मर गए 'जोशिश' इसी दरयाफ़्त में
क्या कहें है कौन सी शय ज़िंदगी