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ऐश की जानिब जो माइल कुछ तबीअ'त हो गई | शाही शायरी
aish ki jaanib jo mail kuchh tabiat ho gai

ग़ज़ल

ऐश की जानिब जो माइल कुछ तबीअ'त हो गई

जोश मलीहाबादी

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ऐश की जानिब जो माइल कुछ तबीअ'त हो गई
दिल पे ग़ुस्सा आ गया अपने से नफ़रत हो गई

मुझ को ख़ुद अपनी तबाही पर तरस आता नहीं
ख़ूगर-ए-ग़म इस क़दर अब तो तबीअ'त हो गई

आई जब स्टेज पर दुनिया तो दिल ख़ुश हो गया
जब उठा अंजाम का पर्दा तो नफ़रत हो गई

आ गईं जुम्बिश में तस्लीम-ओ-रज़ा की क़ुव्वतें
लब मिले ही थे पए शिकवा कि आफ़त हो गई

इस्तिलाह-ए-बंदगी में रूह हैं तारों की 'जोश'
चंद ज़र्रे जिन से पेशानी की ज़ीनत हो गई