ऐश-ए-रफ़्ता ने बहुत ख़ून रुलाया है मुझे
फूल की सेज ने काँटों पे सुलाया है मुझे
दे के इक शो'ला-ए-गुफ़्तार जगाया है मुझे
अहद-ए-ख़्वाबीदा ने बे-दर्द बनाया है मुझे
ज़र्द-रू ख़ार भी है आशिक़-ए-सलमा-ए-बहार
शोख़ कलियों ने इशारों में बताया है मुझे
टूटता ही नहीं रंगीनी-ए-ख़्वाहिश का तिलिस्म
इस्म-ए-आज़म का अमल भी तो सिखाया है मुझे
ख़ून-ए-मज़लूम अकारत तो नहीं जा सकता
ज़ख़्म-ए-गुल-रेज़ ने फूलों से सजाया है मुझे
शायद इस दौर का शिव-जी ही समझ कर 'जावेद'
वक़्त ने ज़ीस्त का सब ज़हर पिलाया है मुझे
ग़ज़ल
ऐश-ए-रफ़्ता ने बहुत ख़ून रुलाया है मुझे
जावेद वशिष्ट