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ऐश-ए-दुनिया का जब शुमार न था | शाही शायरी
aish-e-duniya ka jab shumar na tha

ग़ज़ल

ऐश-ए-दुनिया का जब शुमार न था

शोहरत बुख़ारी

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ऐश-ए-दुनिया का जब शुमार न था
तब हमें दिल पे इख़्तियार न था

हम भी किस क़ाफ़िले में शामिल थे
जिस के पीछे कोई ग़ुबार न था

उम्र भर इश्क़ का फ़रेब रहा
कब हमें अपना इंतिज़ार न था

रात दिन एक ही रहा आलम
कौन सा लम्हा सोगवार न था

वो भी मासूम था अगर 'शोहरत'
अपना दामन भी दाग़दार न था