EN اردو
ऐसे भी थे कुछ हालात | शाही शायरी
aise bhi the kuchh haalat

ग़ज़ल

ऐसे भी थे कुछ हालात

सूफ़ी तबस्सुम

;

ऐसे भी थे कुछ हालात
दिल से छुपाई दिल की बात

हर इक ने इक बात कही
कोई न समझा दिल की बात

शाम-ओ-सहर का नाम न था
ऐसे भी देखे दिन और रात

इश्क़ की बाज़ी क्या कहिए
सोच समझ कर खाई मात

दिल के हाथों हम मजबूर
दिल की लाज पराए हात

हुस्न के तेवर क्या कहने
हर लहज़ा इक ताज़ा बात

अश्कों का तूफ़ान उठा
ग़म में डूब गई बरसात

तुम भी ज़ब्त करो हम भी
इश्क़ है किस के बस की बात

सहमी सहमी सी वो निगाह
बदले बदले से हालात

भूल गया है सब कुछ दिल
याद आई है कौन सी बात

एक तबस्सुम अश्क-आलूद
भीगी भीगी दर्द की बात