ऐसा वार पड़ा सर का
भूल गए रस्ता घर का
ज़ीस्त चली है किस जानिब
ले कासा कासा मर का
क्या क्या रंग बदलता है
वहशी अपने अंदर का
दिल से निकल कर देखो तो
क्या आलम है बाहर का
सर पर डाली सरसों की
पाँव में काँटा कीकर का
कौन सदफ़ की बात करे
नाम बड़ा है गौहर का
दिन है सीने का घाव
रात है काँटा बिस्तर का
अब तो वो जी सकता है
जिस का दिल हो पत्थर का
छोड़ो शे'र उठो 'बाक़ी'
वक़्त हुआ है दफ़्तर का
ग़ज़ल
ऐसा वार पड़ा सर का
बाक़ी सिद्दीक़ी