ऐसा नहीं सलाम किया और गुज़र गए
जब भी मिले किसी से तो दिल में उतर गए
ज़ुल्म-ओ-सितम के आगे कभी जो झुके नहीं
उन के नसीब उन के मुक़द्दर सँवर गए
किरदार बेच देने का अंजाम ये हुआ
दिल में उतरने वाले नज़र से उतर गए
कुछ कैफ़ियत अजीब रही अपनी दोस्तो
की दोस्ती किसी से तो हद से गुज़र गए
बच्चों की भूक माँ की दवा और हाथ तंग
ये मरहले भी हम को गुनहगार कर गए
कुछ ज़िंदगी तो मुझ से मसाइल ने छीन ली
जो बच गई थी हादसे बर्बाद कर गए
'साहिल' जब उन को कोई ठिकाना नहीं मिला
ग़म उन के सारे मेरे ही दिल में ठहर गए
ग़ज़ल
ऐसा नहीं सलाम किया और गुज़र गए
मोहम्मद अली साहिल