EN اردو
ऐसा मंज़र तो कभी देखा न था | शाही शायरी
aisa manzar to kabhi dekha na tha

ग़ज़ल

ऐसा मंज़र तो कभी देखा न था

अफ़सर जमशेद

;

ऐसा मंज़र तो कभी देखा न था
रौशनी में भी मिरा साया न था

प्यार के बादल तो गुज़रे थे मगर
दिल के सहरा में कोई बरसा न था

उम्र-भर पढ़ता रहा ऐसा भी ख़त
तू ने मेरे नाम जो लिक्खा न था

जिस्म की दीवार इक थी दरमियाँ
मैं ने पा कर भी तुझे पाया न था

यूँ तो शबनम था मगर ऐ दोस्तो
मैं किसी भी फूल पर बिखरा न था

मौत सीने से लगा लेने को है
ज़िंदगी ने हाल तक पूछा न था

इक हुजूम-मह-ए-वशॉं था बज़्म में
बस वही इक चाँद का टुकड़ा न था