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ऐसा इलाज-ए-हब्स-ए-दिल-ए-ज़ार चाहिए | शाही शायरी
aisa ilaj-e-habs-e-dil-e-zar chahiye

ग़ज़ल

ऐसा इलाज-ए-हब्स-ए-दिल-ए-ज़ार चाहिए

अहमद अज़ीम

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ऐसा इलाज-ए-हब्स-ए-दिल-ए-ज़ार चाहिए
इक दर फ़सील-ए-जाँ में हवा-दार चाहिए

इक झील नग़्मा-रेज़ हो अहल-ए-सफ़र के साथ
सरसब्ज़ दूर तक सफ़-ए-अशजार चाहिए

सहरा कफ़-ए-तमव्वुज-ए-दरिया में हो असीर
शो'ला हवा से बर-सर-ए-पैकार चाहिए

ये रूह एक ताइर-ए-वहशी नज़ाद है
हर दम सफ़र के वास्ते तय्यार चाहिए

अपने फ़रोग़-ए-हुस्न की तश्हीर के लिए
शहज़ादी-ए-ख़याल को दरबार चाहिए

इस शहर-ए-ख़िश्त-ओ-संग को शीशे की चाह है
कोई जवान आईना-बरदार चाहिए

बाज़ार-ए-आरज़ू में कटी जा रही है उम्र
हम को ख़रीद ले वो ख़रीदार चाहिए