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ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं | शाही शायरी
aisa hua nahin hai par aisa na ho kahin

ग़ज़ल

ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं

मोहम्मद अल्वी

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ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं
उस ने मुझे न देख के देखा न हो कहीं

क़दमों की चाप देर से आती है कान में
कोई मिरे ख़याल में फिरता न हो कहीं

सनकी हुई हवाओं में ख़ुश्बू की आँच है
पत्तों में कोई फूल दहकता न हो कहीं

ये कौन झाँकता है किवाड़ों की ओट से
बत्ती बुझा के देख सवेरा न हो कहीं

'अल्वी' ख़ुदा के वास्ते घर में पड़े रहो
बाहर न जाओ फिर कोई झगड़ा न हो कहीं