ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं
उस ने मुझे न देख के देखा न हो कहीं
क़दमों की चाप देर से आती है कान में
कोई मिरे ख़याल में फिरता न हो कहीं
सनकी हुई हवाओं में ख़ुश्बू की आँच है
पत्तों में कोई फूल दहकता न हो कहीं
ये कौन झाँकता है किवाड़ों की ओट से
बत्ती बुझा के देख सवेरा न हो कहीं
'अल्वी' ख़ुदा के वास्ते घर में पड़े रहो
बाहर न जाओ फिर कोई झगड़ा न हो कहीं
ग़ज़ल
ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं
मोहम्मद अल्वी