ऐसा भी नहीं दर्द के मारे नहीं देखे
हम ने गुल-ओ-बुलबुल के इशारे नहीं देखे
जब मैं ने कहा मरता हूँ मुँह फेर के बोले
सुनते तो हैं पर इश्क़ के मारे नहीं देखे
हर सम्त फिरे ख़ाक उड़ाया किए बरसों
पर नक़्श-ए-क़दम हम ने तुम्हारे नहीं देखे
पोशीदा हैं किस हद में मिरी ख़ाक के ज़र्रे
पत्थर में भी इस तरह इशारे नहीं देखे
तुर्बत में मिरे बंद-ए-कफ़न खोल के बोले
हम ने दहन-ए-ज़ख़्म तुम्हारे नहीं देखे
अब क़ब्र पे आए हो तो इस सम्त भी देखो
हाँ नीची निगाहों के इशारे नहीं देखे
बेचैन है दिल फ़स्ल-ए-बहारी में 'हसीं' का
अब तक किसी गुल-रू के इशारे नहीं देखे

ग़ज़ल
ऐसा भी नहीं दर्द के मारे नहीं देखे
सय्यद सादिक़ अली हसीन