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ऐ ज़ुल्फ़ उस के मुँह से तू तो लिपट रही है | शाही शायरी
ai zulf uske munh se tu to lipaT rahi hai

ग़ज़ल

ऐ ज़ुल्फ़ उस के मुँह से तू तो लिपट रही है

जोशिश अज़ीमाबादी

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ऐ ज़ुल्फ़ उस के मुँह से तू तो लिपट रही है
गेसू को काटियो मत वो आप कट रही है

हो किस तरह मयस्सर उस बहर हुस्न की सैर
अबरू की एक कश्ती सो भी उलट रही है

दिल देने की हक़ीक़त हम ख़ूब जानते हैं
है ग़म किसी का उस को जो ज़ुल्फ़ लट रही है

महरूम हम ही हैं इस मेहमाँ-सरा में वर्ना
किस किस तरह की नेमत ख़िल्क़त को बट रही है

ख़ाली नहीं ख़लल से 'जोशिश' ये ख़ैबर-ए-दिल
दिन रात मौज ग़म की इस से चिमट रही है