ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक
कुश्ता-ए-ज़िंदगी वफ़ा कब तक
गर्मी-ए-कोशिश-ए-जफ़ा कब तक
दावा-ए-शोहरत-ए-वफ़ा कब तक
ऐ दिल-ए-ज़ोहद-ख़ू रिया कब तक
नामुरादाना मुद्दआ कब तक
एक में मिल गया ख़ुदा मारा
यूँ निबाहेगा दूसरा कब तक
इम्तिहाँ पर ये इम्तिहाँ ता-चंद
आज़मा आज़माएगा कब तक
हसरत आएगी दम में सौ सौ बार
ऐ हवस शोर-ए-मरहबा कब तक
क़ुदरत-ए-सब्र आक़िबत कितनी
जुरअत-ए-ताक़त-आज़मा कब तक
तुम समझ जाओ मेरी ख़ामोशी
न कहूँ कहिए मुद्दआ कब तक
कीजिए अब मिरे निबाह की फ़िक्र
यार सब्र-ए-गुरेज़-पा कब तक
ख़्वाब में भी वो आएँगे ता-चंद
मैं मिला भी तो यूँ मिला कब तक
दिल में कब तक तुम्हारे खटकूँगा
चश्म-ए-दुश्मन में मेरी जा कब तक
तंदुरुस्ती-ए-दिल है बे-जानी
दर्द-ए-बे-दर्द की दवा कब तक
तर्क की साफ़ उस ने गोयाई
नर्गिस-ए-सुर्मा-सा ख़फ़ा कब तक
ऐ दिल-ए-बे-क़रार-ओ-बे-आराम
नाला ता-चंद ता-कुजा कब तक
ऐ 'क़लक़' वस्ल में भी हूँ नाशाद
ताला-ए-ना-रसा रसा कब तक
ग़ज़ल
ऐ सितम-आज़मा जफ़ा कब तक
ग़ुलाम मौला क़लक़