ऐ शम्-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-ए-तार-ए-मोहब्बत
बख़्शे है यही गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत
करते हैं अबस मुझ दिल-ए-बीमार का दरमाँ
वाबस्ता मिरी जाँ से है आज़ार-ए-मोहब्बत
ऐ लाला-रुख़ाँ उन के तईं दाग़ न समझो
फूला है मिरे सीने में गुलज़ार-ए-मोहब्बत
गर हम से छुपाता है तू 'बेदार' व-लेकिन
इंकार ही तेरा है ये इक़रार-ए-मोहब्बत
रहता है मिरी जान कहीं इश्क़ भी पिन्हाँ
ज़ाहिर हैं तिरी शक्ल से आसार-ए-मोहब्बत
ग़ज़ल
ऐ शम्-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-ए-तार-ए-मोहब्बत
मीर मोहम्मदी बेदार