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ऐ शम्-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-ए-तार-ए-मोहब्बत | शाही शायरी
ai sham-e-dil-afroz shab-e-tar-e-mohabbat

ग़ज़ल

ऐ शम्-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-ए-तार-ए-मोहब्बत

मीर मोहम्मदी बेदार

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ऐ शम्-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-ए-तार-ए-मोहब्बत
बख़्शे है यही गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत

करते हैं अबस मुझ दिल-ए-बीमार का दरमाँ
वाबस्ता मिरी जाँ से है आज़ार-ए-मोहब्बत

ऐ लाला-रुख़ाँ उन के तईं दाग़ न समझो
फूला है मिरे सीने में गुलज़ार-ए-मोहब्बत

गर हम से छुपाता है तू 'बेदार' व-लेकिन
इंकार ही तेरा है ये इक़रार-ए-मोहब्बत

रहता है मिरी जान कहीं इश्क़ भी पिन्हाँ
ज़ाहिर हैं तिरी शक्ल से आसार-ए-मोहब्बत