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ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझे | शाही शायरी
ai sang-e-rah aabla-pai na de mujhe

ग़ज़ल

ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझे

ज़रीना सानी

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ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझे
ऐसा न हो कि राह सुझाई न दे मुझे

सत्ह-ए-शुऊर पर है मिरे शोर इस क़दर
अब नग़मा-ए-ज़मीर सुनाई न दे मुझे

इंसानियत का जाम-ए-जहाँ पाश पाश हो
अल्लाह मेरे ऐसी ख़ुदाई न दे मुझे

रंगीनियाँ शबाब की इतनी हैं दिल-फ़रेब
बालों पे आती धूप दिखाई न दे मुझे

तर्क-ए-तअल्लुक़ात पे इसरार था तुझे
अब तो मिरी वफ़ा की दुहाई न दे मुझे

बे-बाल-ओ-पर हूँ रास न आएगी ये फ़ज़ा
'सानी' क़फ़स से अपने रिहाई न दे मुझे