ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझे
ऐसा न हो कि राह सुझाई न दे मुझे
सत्ह-ए-शुऊर पर है मिरे शोर इस क़दर
अब नग़मा-ए-ज़मीर सुनाई न दे मुझे
इंसानियत का जाम-ए-जहाँ पाश पाश हो
अल्लाह मेरे ऐसी ख़ुदाई न दे मुझे
रंगीनियाँ शबाब की इतनी हैं दिल-फ़रेब
बालों पे आती धूप दिखाई न दे मुझे
तर्क-ए-तअल्लुक़ात पे इसरार था तुझे
अब तो मिरी वफ़ा की दुहाई न दे मुझे
बे-बाल-ओ-पर हूँ रास न आएगी ये फ़ज़ा
'सानी' क़फ़स से अपने रिहाई न दे मुझे
ग़ज़ल
ऐ संग-ए-राह आबला-पाई न दे मुझे
ज़रीना सानी