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ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके | शाही शायरी
ai sanam tujhko hum bhula na sake

ग़ज़ल

ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके

फ़ना बुलंदशहरी

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ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके
दिल से दाग़-ए-वफ़ा मिटा न सके

अल्लाह अल्लाह उस आस्ताँ की कशिश
सर झुकाया तो सर उठा न सके

मिट गए शौक़-ए-दीद में लेकिन
आप जल्वा हमें दिखा न सके

तेरी चाहत में दर्द वो पाया
हम ज़माने में चैन पा न सके

दे के दिल तुम को जान भी दे दी
फिर भी अपना तुम्हें बना न सके

जब से निस्बत हुई तिरे दर से
हम किसी दर पे सर झुका न सके

इश्क़ में ये अजब तमाशा है
उन को पाया तो ख़ुद को पा न सके

ऐसी बदली हवा ज़माने की
ज़ख़्म सीने के मुस्कुरा न सके

तुम 'फ़ना' की लहद पे बा'द-ए-फ़ना
आ के दो फूल भी चढ़ा न सके