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ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़ | शाही शायरी
ai saf-e-mizhgan takalluf bar-taraf

ग़ज़ल

ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़

नज़ीर अकबराबादी

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ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़
देखती क्या है उलट दे सफ़ की सफ़

देख वो गोरा सा मुखड़ा रश्क से
पड़ गए हैं माह के मुँह पर कलफ़

आ गया जब बज़्म में वो शोला-रू
शम्अ तो बस हो गई जल कर तलफ़

साक़ी भी यूँ जाम ले कर रह गया
जिस तरह तस्वीर हो साग़र-ब-कफ़