ऐ रश्क-ए-क़मर आगे तिरे शम्स-ओ-क़मर क्या
सौ जाँ से फ़िदा हूँ मैं ये है जान-ओ-जिगर क्या
इक आन में देते हो जिला इश्क़ के मारे
इन बातों से थी ईसी-ए-मरियम को ख़बर क्या
ग़ैरत में मोहब्बत में मुरव्वत में तिरा मिस्ल
पाया नहीं हम ने कहीं और होगा बशर क्या
दिन भर है तसव्वुर है मगर बात को रोना
करते हैं मियाँ देखिए ये दीदा-ए-तर क्या
हम तुम हैं दिल-ओ-जाँ से अगर एक ही 'मर्दां'
कहने को हैं वो एक हैं हम दो हैं मगर क्या

ग़ज़ल
ऐ रश्क-ए-क़मर आगे तिरे शम्स-ओ-क़मर क्या
मरदान सफ़ी