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ऐ नक़्श-गरो लौह-ए-तहरीर हमें दे दो | शाही शायरी
ai naqsh-garo lauh-e-tahrir hamein de do

ग़ज़ल

ऐ नक़्श-गरो लौह-ए-तहरीर हमें दे दो

एज़ाज़ अफ़ज़ल

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ऐ नक़्श-गरो लौह-ए-तहरीर हमें दे दो
हम अपने मुसव्विर हैं तस्वीर हमें दे दो

आग़ोश-ए-कमाँ अब तक अफ़्कार का ख़ाली है
तुम अपनी निगाहों के कुछ तीर हमें दे दो

क्या तोल रहे हो तुम हाथों में ख़िरद-मंदो
ज़ेवर ये जुनूँ का है ज़ंजीर हमें दे दो

ऐ ख़ाली कटोरों के बे-कैफ़ निगहबानों
मय-ख़ाना हमारी है जागीर हमें दे दो

तुम तो न झुका पाए गर्दन दिल-ए-सरकश की
ऐ अहल-ए-सितम लाओ शमशीर हमें दे दो

आशुफ़्ता लकीरें हैं तहरीर की नौ-मश्क़ी
लिख लेंगे हमीं लौह-ए-तक़दीर हमें दे दो