ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे
अरे बेदर्द रोने में मुझे बेबाक रहने दे
बरस मत अब्र मिट जागा बघोला ख़ाक-ए-मजनूँ का
ख़ुदा के वास्ते दश्त-ए-जुनूँ की नाक रहने दे
दिल-ए-ज़ख़्मी है शाएक़ बू-ए-गुल और शोर-ए-बुलबुल का
रफ़ू-गर फ़स्ल-ए-गुल में ये गरेबाँ चाक रहने दे
ये ताक़त नज़्र है ऐ ना-तवानी पर बहारों में
मिरे हाथों को चाक-ए-जेब पर चालाक रहने दे
नसीहत मुझ को तर्क-ए-इश्क़ की कुछ फ़र्ज़ नहीं तुझ पर
न छोड़ ऐ शैख़ सुन्नत मुँह में नित मिसवाक रहने दे
उड़ा मत ऐ नसीम-ए-बाग़-ए-जन्नत क्या करूँ तुझ को
मिरे सर पर ज़रा पी की गली की ख़ाक रहने दे
अगर जूँ शम्अ-दीद-ए-शो'ला-रूयाँ चाहिए 'उज़लत'
नज़ारा ता न जल जा चश्म को नमनाक रहने दे
ग़ज़ल
ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे
वली उज़लत