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ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा | शाही शायरी
ai meri zat ke sukun aa ja

ग़ज़ल

ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा

फरीहा नक़वी

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ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा
थम न जाए कहीं जुनूँ आ जा

रात से एक सोच में गुम हूँ
किस बहाने तुझे कहूँ आ जा

हाथ जिस मोड़ पर छुड़ाया था
मैं वहीं पर हूँ सर निगूँ आ जा

याद है सुर्ख़ फूल का तोहफ़ा?
हो चला वो भी नील-गूँ आ जा

चाँद तारों से कब तलक आख़िर
तेरी बातें किया करूँ आ जा

अपनी वहशत से ख़ौफ़ आता है
कब से वीराँ है अंदरूँ आ जा

इस से पहले कि मैं अज़िय्यत में
अपनी आँखों को नोच लूँ आ जा

देख! मैं याद कर रही हूँ तुझे
फिर मैं ये भी न कर सकूँ आ जा