ऐ मिरे दिल तुझे पता है क्या
वो तिरे ग़म से आश्ना है क्या
मुझ में मातम का शोर कैसा है
मेरे अंदर कोई मिरा है क्या
सब से हँस के गले जो मिलता है
शहर में वो नया नया है क्या
ज़िंदगी धो के रोज़ पीता हूँ
और पीने को कुछ बचा है क्या
क़िस्सा-ए-दिल रक़म करूँ कैसे
इश्क़ है कोई सानेहा है क्या
फल कोई हाथ क्यूँ नहीं आता
क़द में मुझ से शजर बड़ा है क्या
तुझ में उलझा हुआ मैं रहता हूँ
तू बता मेरा मसअला है क्या
क्यूँ मुझे ढूँढती है पुर्वाई
मेरे ज़ख़्मों से वास्ता है क्या
मुझ को झूटा बता रहा है जो
मेरे अंदर का आइना है क्या
कौन देता है दस्तकें इतनी
गुम-शुदा कोई हादिसा है क्या
कैसे ख़ुर्शीद उस को बदलोगे
ज़िंदगी कोई क़ाफ़िया है क्या

ग़ज़ल
ऐ मिरे दिल तुझे पता है क्या
ख़ुर्शीद अहमद मलिक