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ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का | शाही शायरी
ai mehr jo wan naqab sar ka

ग़ज़ल

ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का

हातिम अली मेहर

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ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का
तड़का हो जाएगा सहर का

अल्लाह रे तूल बलबे उलझाओ
है ज़ुल्फ़ का क़िस्सा रात-भर का

मख़्फ़ी की बयाज़ भी तो देखें
मज़मून तो ढूँढिए कमर का

बनता तो है ख़ाक से भी सोना
मुहताज नहीं फ़क़ीर ज़र का

दिल में है ख़याल-ए-चेहरा-ए-यार
हम-साया हूँ आइने के घर का

मीठा तेरे लब का किया है मुझ को
है रंग तो सुर्ख़ इस शकर का