ऐ ख़ूब-रू फ़रिश्ता सियर-अंजुमन में आ
सर्व-ए-रवान-ए-हुस्न हमारे चमन में आ
मुँह बाँध कर कली सा न रह मेरे पास तू
ख़ंदाँ हो कर के गुल की सिफ़त टुक सुख़न में आ
उश्शाक़ जाँ-ब-कफ़ खड़े हैं तेरे आस-पास
ऐ दिल-रुबा-ए-ग़ारत-ए-जाँ अपने फ़न में आ
दूरी न कर कनार सूँ मेरी तू ऐ हुमा
कब लग रहेगा दूर तक अपने वतन में आ
तेरे मिलाप बिन नहीं 'फ़ाएज़' के दिल को चैन
जिऊँ रूह हो बसा है तू उस के बदन में आ
ग़ज़ल
ऐ ख़ूब-रू फ़रिश्ता सियर-अंजुमन में आ
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़