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ऐ काश हो बरसात ज़रा और ज़रा और | शाही शायरी
ai kash ho barsat zara aur zara aur

ग़ज़ल

ऐ काश हो बरसात ज़रा और ज़रा और

अहया भोजपुरी

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ऐ काश हो बरसात ज़रा और ज़रा और
बढ़ जाए मुलाक़ात ज़रा और ज़रा और

हाथों में तिरा हाथ ये काफ़ी तो नहीं है
मिल जाएँ ख़यालात ज़रा और ज़रा और

खलती है ये तन्हाई तो दूरी भी मिटा दे
तू मान मिरी बात ज़रा और ज़रा और

बुझती है कहाँ प्यास अब आँखों से पिला कर
दे प्यार की सौग़ात ज़रा और ज़रा और

हालात हूँ हमवार तो क्या फ़िक्र है लेकिन
मुश्किल में मुनाजात ज़रा और ज़रा और

जब प्यार से मिलता है तो भरता है कहाँ दिल
उल्फ़त से भरी रात ज़रा और ज़रा और