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ऐ जुनूँ दश्त में दीवार कहाँ से लाऊँ | शाही शायरी
ai junun dasht mein diwar kahan se laun

ग़ज़ल

ऐ जुनूँ दश्त में दीवार कहाँ से लाऊँ

शाज़ तमकनत

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ऐ जुनूँ दश्त में दीवार कहाँ से लाऊँ
मैं तमाशा सही बाज़ार कहाँ से लाऊँ

याद-ए-अय्याम कि कुछ सर में समाई थी हवा
अब वो टूटा हुआ पिंदार कहाँ से लाऊँ

किस से पूछूँ कि मिरा हाल-ए-परेशाँ क्या है
तुझ को ऐ आइना-बरदार कहाँ से लाऊँ

मेरी उन आँखों ने जैसे तुझे देखा ही नहीं
हाए वो हसरत-ए-दीदार कहाँ से लाऊँ

इन निगाहों में तरसने की सी कैफ़िय्यत है
ताक़त-ए-पुर्सिश-ए-बीमार कहाँ से लाऊँ

अब मिरे कुफ़्र को ईमाँ नहीं कहता कोई
तुझ को ऐ चश्म-ए-तरफ़-दार कहाँ से लाऊँ

था ये घर बाब-ए-दुआ मिस्ल-ए-असर तेरा वरूद
अब तुझे ऐ क़दम-ए-यार कहाँ से लाऊँ