ऐ जुनूँ दश्त में दीवार कहाँ से लाऊँ
मैं तमाशा सही बाज़ार कहाँ से लाऊँ
याद-ए-अय्याम कि कुछ सर में समाई थी हवा
अब वो टूटा हुआ पिंदार कहाँ से लाऊँ
किस से पूछूँ कि मिरा हाल-ए-परेशाँ क्या है
तुझ को ऐ आइना-बरदार कहाँ से लाऊँ
मेरी उन आँखों ने जैसे तुझे देखा ही नहीं
हाए वो हसरत-ए-दीदार कहाँ से लाऊँ
इन निगाहों में तरसने की सी कैफ़िय्यत है
ताक़त-ए-पुर्सिश-ए-बीमार कहाँ से लाऊँ
अब मिरे कुफ़्र को ईमाँ नहीं कहता कोई
तुझ को ऐ चश्म-ए-तरफ़-दार कहाँ से लाऊँ
था ये घर बाब-ए-दुआ मिस्ल-ए-असर तेरा वरूद
अब तुझे ऐ क़दम-ए-यार कहाँ से लाऊँ
ग़ज़ल
ऐ जुनूँ दश्त में दीवार कहाँ से लाऊँ
शाज़ तमकनत