ऐ इश्क़ तू ने वाक़िफ़-ए-मंज़िल बना दिया
अब मरहलों को और भी मुश्किल बना दिया
अल्लाह-रे शौक़-ए-क़ैस की जल्वा-तराज़ियाँ
अक्सर ग़ुबार-ए-दश्त को महमिल बना दिया
मैं ग़र्क़ हो रहा था कि तूफ़ान-ए-इश्क़ ने
इक मौज-ए-बे-क़रार को साहिल बना दिया
हम ने इक आह-ए-सर्द को शम-ए-सहर के साथ
रूदाद-ए-ना-तमाम का हासिल बना दिया
ऐ दिल ये सब अमीर-ए-सुख़न-वर का फ़ैज़ है
ज़र्रे को जिस ने जौहर-ए-क़ाबिल बना दिया
ग़ज़ल
ऐ इश्क़ तू ने वाक़िफ़-ए-मंज़िल बना दिया
दिल शाहजहाँपुरी