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ऐ हम-नफ़सो! शब है गिराँ जागते रहना | शाही शायरी
ai ham-nafaso! shab hai giran jagte rahna

ग़ज़ल

ऐ हम-नफ़सो! शब है गिराँ जागते रहना

ओवेस अहमद दौराँ

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ऐ हम-नफ़सो! शब है गिराँ जागते रहना
हर लहज़ा है याँ ख़तरा-ए-जाँ जागते रहना

ऐसा न हो ये रात कोई हश्र उठा दे
उठता है सितारों से धुआँ जागते रहना

अब हुस्न की दुनिया में भी आराम नहीं है
है शोर सर-ए-कू-ए-बुताँ जागते रहना

ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ नहीं मक़्तल है रफ़ीक़ो!
हर शाख़ है तलवार यहाँ जागते रहना

बे-दारों की दुनिया कभी लुटती नहीं 'दौराँ'
इक शम्अ लिए तुम भी यहाँ जागते रहना